सिर्फ हिन्दुस्तान चाहिए

मैं जब घर से निकलता हूँ, थोड़ी दूर चलता हूँ,
चारो और देखता हूँ, एक ही बात नजर आती है
उजाला खो गया बस रात ही रात नजर आती है
कुछ लोगो के मुँह पर ललकार दिखाई देती है
तो कुछ के हाथो में सिर्फ तलवार दिखाई देती है
आज आदमी, आदमी का खून पीकर जिंदा है
प्यासा ही मर जाता है हमसे अच्छा वो परिंदा है
वक़्त खराब है पड़ोसी पड़ोसी के काम नहीं आता
ऐसे व्यस्त हैं बिन कारण जिह्वा पे राम नही आता
सारी की सारी दुनिया कहीं न कहीं परेशान है
कोई लंबी कतार से, पड़ोसी की हाहाकार से
कोई परेशान है सरकारी राशन की दुकान से
कोई कर्जे में बिकते अपने मकान से
कोई पुलिस से तो आतंकी वार से
भूखा भूख और जनता सरकार से
सबके शौक बड़े है सबको अधिकार चाहिए
सिर्फ रोटी नही अब बड़े बड़े व्यापार चाहिए
लग रहा होगा मैं इधर उधर की बाते बना रहा हूँ
फिजूल का भाषण आप सबको सुना रहा हूँ
पर सत्ता के लालची धर्म की आड में हमे आपस में लडा रहें है
और ये आज के विद्यार्थी को आतंक की किताब पढ़ा रहे हैं
यह लड़ाई है क्योंकि किसी को मान चाहिए
भीख मांगते भिखारी को भी सम्मान चाहिए
किसी को शौहरत और तो किसी को शान चाहिए
किसी को ऊंची इमारत या सिर्फ एक मकान चाहिए
पर है कोई भगत जैसा जिसे सिर्फ हिन्दुस्तान चाहिए

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