कवि हूँ
अपने शब्दों के जाल में मैं किसी को फ़साना तो नहीं चाहता
हसंते हुए को आज रुलाना तो नहीं चाहता
जगमगाते दिए को बुझाना तो नहीं चाहता
सोचकर देख कवि हूँ
कहीं अपनी बातो से तुझे कुछ बताना तो नहीं चाहता
हसंते हुए को आज रुलाना तो नहीं चाहता
जगमगाते दिए को बुझाना तो नहीं चाहता
सोचकर देख कवि हूँ
कहीं अपनी बातो से तुझे कुछ बताना तो नहीं चाहता
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