देख मिल गया, खुला आसमाँ भी...
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वरदान समझता हूँ
शुभ संध्या...., पुराने अंदाज...
मैं कल भी जिया और आज भी जी...
आईये घर बनाएं…
आओ कसमे खाएं अपनी...
हमें बीमार कर गई
एक नजर इस पर भी...कैसे भुला...
आदत थी यादें बनाने की
हमरा तो सर ही चकरा गवा है...
शायद मंद हवा थी
सिर्फ तुम...हां तुम...ओह हो...
हिन्दुस्तान लिखता हूँ
सोचिये कुछ इस तरह...
खफा है मेरी परछाई से
कोशिश छोटी सी...क्या फर्क...
जीवन मे फैसले सोच समझकर लें
कुछ ही समय पहले की बात है...