आज फिर बादल ये शेर सा गरजने लगा हैबिजली कड़क रही है आसमाँ जलने लगा हैंबूंदों ने पकड़ा है हाथ लहरते पत्तो काभीगा आँगन भी फूलो सा महकने लगा है
Category: मुक्तक
गुलाब-ए-गुलिस्तां
मेरी आँखे भी बंद होती है तो तेरा चेहरा नजर आता है मेरी धड़कन भी बंद होती है तो तेरा रूप समझ आता है मुझे क्या मतलब होगा उस कीचड़ में खिलते कमल से जब...
मैंने “उन्हें” चुना हैं
मोहब्बत की उलझनों से मैंने तक़दीर को बुना है टिमटिमाते तारो से भी मैंने एक संगीत सुना है समय के साथ बदल जाया करते हैं लोग बदलते लोगो को देखकर ही...
जहन्नुम से अपनी जगह चुरा रहे हो
बनावट के खिलोनो से क्या तुम कुदरत को सजा रहे हो जरा आज सच तो बताओ तुम किसे बेवकूफ बना रहे हो वो मालिक जिसने तुझे सजाया है, तुझे भी पता है छेड़...
खूनदान महादान जीवनदान
उड़ते परिंदे सी तू ऊँची उड़ान तो भर दे सके दान पेड़ो सा दयावान तो बन तेरे दीदार को, तेरा भगवान भी तरसे तू मरते के लिए उसके प्राण तो बन खूनदान...
मेरे हाथ ख़त भी नहीं
मेरे हाथ ख़त भी नहीं उन तक पैगाम पहुँचाने को मेरे साथ वो भी नहीं कुछ वक़्त बिताने को मैं तड़प रहा शिशिक रहा हूँ यादो में उनकी मेरे पास कोई राह नहीं...
इन राहो से गुजरना छोड़ दो
इन राहो से गुजरना छोड़ दो अपने गुनाहों से मुकरना छोड़ दोफूलो से ही नहीं काँटों से भी मोहब्बत कर वरना इन कलियों पर भटकना छोड़ दो
अकेला हूँ
क्या ढूँढने निकलाहूँमैं नहीं जानताइस महकती खुशबू को मैं नहीं पहचानतामैं कल भी अकेला था आज भी अकेलाहूँकोइ किसी का है इस दुनिया में मैं नहीं मानता
तेरी चाहत में सब कुछ भुला दिया
तेरी चाहत में सब कुछ भुला दियातेरी यादो नें आज मुझे रूला दियासोचताहूँएक पल के लिए भूल जाउं तु झेलेकिन भूलने की चाहत ने ही तेरा आशिक बना दिया
कवि हूँ
अपने शब्दों के जाल में मैं किसी को फ़साना तो नहीं चाहता हसंते हुए को आज रुलाना तो नहीं चाहता जगमगाते दिए को बुझाना तो नहीं चाहता सोचकर देख कवि हूँ...