Author: Gurmeet Singh

अब आँखों से ऑंखें लड़ाने में डर नहीं लगता

अब आँखों से ऑंखें लड़ाने में डर नहीं लगताकॉलेज के दुसरे माले पर आने में डर नहीं लगताबहुत रिझाती थी वो मुझे औरो के साथअब किसी और के साथ आने जाने में...

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आज फिर बादल

आज फिर बादल ये शेर सा गरजने लगा हैबिजली कड़क रही है आसमाँ जलने लगा हैंबूंदों ने पकड़ा है हाथ लहरते पत्तो काभीगा आँगन भी फूलो सा महकने लगा है

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गुलाब-ए-गुलिस्तां

मेरी आँखे भी बंद होती है तो तेरा चेहरा नजर आता है मेरी धड़कन भी बंद होती है तो तेरा रूप समझ आता है मुझे क्या मतलब होगा उस कीचड़ में खिलते कमल से जब...

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मैंने “उन्हें” चुना हैं

मोहब्बत की उलझनों से मैंने तक़दीर को बुना है टिमटिमाते तारो से भी मैंने एक संगीत सुना है समय के साथ बदल जाया करते हैं लोग बदलते लोगो को देखकर ही...

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जहन्नुम से अपनी जगह चुरा रहे हो

बनावट के खिलोनो से क्या तुम कुदरत को सजा रहे हो जरा आज सच तो बताओ तुम किसे बेवकूफ बना रहे हो वो मालिक जिसने तुझे सजाया है, तुझे भी पता है छेड़...

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मेरे हाथ ख़त भी नहीं

मेरे हाथ ख़त भी नहीं उन तक पैगाम पहुँचाने को मेरे साथ वो भी नहीं कुछ वक़्त बिताने को मैं तड़प रहा शिशिक रहा हूँ यादो में उनकी मेरे पास कोई राह नहीं...

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माँ

माँ की महिमा गाने मैं आया हूँमाँ क्या होती है ये बतलाने मैं आया हूँबचपन में रोता देख मुझे रोटी थी माँआज वो बचपन खो चुका हूँमगर उस माँ की याद दिलाने...

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अकेला हूँ

क्या ढूँढने निकलाहूँमैं नहीं जानताइस महकती खुशबू को मैं नहीं पहचानतामैं कल भी अकेला था आज भी अकेलाहूँकोइ किसी का है इस दुनिया में मैं नहीं मानता

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