आँखों की शर्मिंदगी

कभी ठोकर खाती है कभी ठोकर खिलाती है जिन्दगी तेरी
कभी महबूब तो कभी अल्लाह , याद दिलाती है बंदगी तेरी
मैं बस सर उठा कर जीता था सारे जहान में तेरे ही फक्र में
अब मेरी भी आँखे झुका देती है ये आँखों की शर्मिंदगी तेरी

#गुनी …

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